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  मंगळवार, १३ मे, २०१४   0 टिप्पणी(ण्या)


कुछ तो होता है दीवाने मे जुनूँ का भी असर
और कुछ लोग भी दीवाना बना देते हैं
- unknown

'किताबों से कभी गुजरो तो यूँ किर्दार मिलते है
गये वक्तों की ज्योढी में खडे कुछ यार मिलते है!'
- गुलजार

आँखों को वीजा नहीं लगता, सपनों की सरहद होती नहीं
बंद आँखों से रोज मै सरहद पार चला जाता हूँ!..
- गुलजार

वो जिंदगी के कडे कोस! याद आता है
तिरी निगाहे करम का घना साया
- फिराक

वो देवदार की टहनी पे रुक गया सा चाँद
हवा चले तो अभी करवटे बदलने लगे
- विमल कृष्ण अश्क

यू न मुरझा कि मुझे खुद पे भरोसा न रहे
पिछले मौसम मे तिरे साथ खिला हूं मै भी
- मजहर इमाम

ये एक अब्र1 का टुकडा कहा कहा बरसे
तमाम दश्त2 ही प्यासा दिखाई देता है
-शकेब जलाली
1 बादल, मेघ  2 जंगल


कोई तहरीर1 मिटाये तो धुआं उठता है
दिल वो भीगा हुआ कागज है कि जलता ही नही
-मुमताज रशीद
1 लिखावट


मैने इस खौफ से बोये नही ख्वाबों के दरख्त
कौन जंगल मे उगे पेड को पानी देगा
- दाराब बानो वफा

जैसा दर्द हो वैसा मंजर होता है
मौसम तो इंसान के अंदर होता है
- आजीज एजाज

गलियो मे वही लडके हाथो मे वही पत्थर
क्या लोग मोहब्बत को हर दौर मे मारेंगे
- अन्वर नदीम

चिराग बन के जले है तुम्हारी महफिल मे
वो जिनके घर में कभी रौशनी नही होती
- नरेश कुमार शाद

बरसात मे तालाब हो जाते है कमजर्फ1
बाहर कभी आपे से समुंदर नही होता
- ऐजाज रहमानी
1 कमीना


फूल मुरझाते है अल्फाज नही मुरझाते
दूर जाना है बुजूर्गो कि दुआ ले जाओ
- शैदा रुमानी

खुशबू कि तरह जीना भी आसान तो नही
फुलो से कतरा कतरा निचोडा गया हूं मै
- नसीम निकहत


मिट्टी भी उठा लेते है टूटे हुये घर की
गिराते हुए लोगो को उठाने नही आते
- अशोक मिजाज

फूल से आशिकी का हुनर सीख ले
तितलिया खुद रुकेंगी सदाये न दे
- बशीर बद्र


शहर वालो की मुहब्बत का मै कायल हूं मगर
मैने जिस हाथ को चूमा वही खंजर निकला से
- अहमद फराज


बुलंदीयो गिरोगे तो टूट जाओगे
जबाँ से अपनी बडा बोल बोलते क्युं हो
- महबूब राही

जुल्म होता था तो जंजीर हिला देते थे
आज तो होंठ हिलाने से भी डर लगता है
- के. आर. ज्या

दो तुन्द1 हवाओ पर बुनियाद है तूफान की
या तुम न हंसी होते या मै न जवा होता
- आरजू लखनवी
1 तीक्ष्ण, उग्र, उत्कट


घर से मास्जिद है बहुत दूर, चलो यू कर ले
किसी रोते हुए बच्चे को हसाया जाये
- निदा फाजली


सूरज के हमसफर जो बने हो तो सोच लो
इस रास्ते मे प्यास के दरिया भी आयेगा
- कतील शिफाई


रात के सन्नाटे मे हमने कया कया धोके खाये है
अपना ही जब दिल धडका, तो हम समझे वो आये है
- कतील शिफाई

  गुरुवार, ९ डिसेंबर, २०१०   0 टिप्पणी(ण्या)


बालपणीच्या रम्य आठवणींवर अनेक कवींनी सुंदर कविता लिहिल्या आहेत. 
अशीच ही गुलजार यांची सुंदर कविता. 
पण ही केवळ बालपणीच्या रम्य आठवणींची कविता नाही. आपल्या नजरेसमोर जीवलग मित्रांच्या मृत्यू पाहणार्‍या एका प्रतिभावंताची ही कविता आहे.
एका विषयापासून सुरुवात करून अत्यंत वेगळा आणि गंभीर शेवट करण्याची गुलजार यांना विलक्षण हातोटी आहे. गुलजार यांची त्रिवेणी ज्यांनी वाचली असेल त्यांना या त्यांच्या सामर्थ्याची पूर्ण कल्पना असेल ..... 

गाईच्या शेणाच्या गोवर्‍या थापतेवेळी बालवयात खेळलेले खेळ आणि त्याच्या आठवणी मित्राच्या मृत्यूनंतर अस्वस्थ करतात ....
                                                                                                                                                                    
                                                                                                                                                                        कवीस आणि तुम्हा-आम्हासही 

ईंधन

छोटे थे, माँ उपले थापा करती थी
हम उपलों पर शक्लें गूँधा करते थे
आँख लगाकर - कान बनाकर
नाक सजाकर -
पगड़ी वाला, टोपी वाला
मेरा उपला -
तेरा उपला -
अपने-अपने जाने-पहचाने नामों से
उपले थापा करते थे
हँसता-खेलता सूरज रोज़ सवेरे आकर
गोबर के उपलों पे खेला करता था
रात को आँगन में जब चूल्हा जलता था
हम सारे चूल्हा घेर के बैठे रहते थे
किस उपले की बारी आयी
किसका उपला राख हुआ
वो पंडित था -
इक मुन्ना था -
इक दशरथ था -

बरसों बाद - 
मैं श्मशान में बैठा सोच रहा हूँ
आज की रात 
इस वक्त के जलते चूल्हे में
इक दोस्त का उपला और गया!

                            - गुलज़ार

  शुक्रवार, ३० ऑक्टोबर, २००९   0 टिप्पणी(ण्या)