बुधवार, १४ मे, २०१४   0 टिप्पणी(ण्या)

हरिवंशराय बच्चन यांच्या अनेक सुंदर कवितांपैकी एक कविता म्हणजे चिडिया और चुरुगन होय.
आपल्या आई वडिलांच्या अभ्यासक्रमात ही कविता होती….
चिमणीचे एक सुंदरसे पिल्लू … जे अतिशय उत्सुकतेने आणि आश्चर्याने या जगाकडे बघते. आपल्यासारख्याच दिसणार्‍या पक्षांना उडतांना पाहून त्याला अतिशय आनंद होतो आणि अनिवार ओढ लागते की आपल्याला कधी उडता येईल?
आपल्या आजूबाजूच्या जगाकडे बघतांना -
त्याला वारा वाहातांना दिसतो, झाडे डुलतांना दिसतात, पाने हलतांना दिसतात. फांदीवर बसल्यामुळे तो स्वतः देखील हलतोय.
या फांदीवरून त्या फांदीवर आपल्याला जाता येतय, भूक लागली म्हणून मी खाली जाऊ इच्छितो
आणि दरवेळेस त्याला वाटतय की वा! आपल्याला उडता यायला लागलय की काय? … म्हणून तो आईला विचारतो की “क्या मां मुझको उडना आया?”
त्यावर ती आई दरवेळी त्याला समजावण्याच्या सुरात सांगते की “नही चुरूगन तु भरमाया”
या झाडावरून त्या झाडावरही आपल्याला जाता येतय तरी आई म्हणते की मला अजून उडता येत नाही …
शेवटी ज्या वेळेस तो म्हणतो की मला हे निळे आकाश आता अनिवार साद घालते आहे आणि उड.. उड म्हणून मला आतून आवाज येतोय.
त्या वेळेस मात्र आई म्हणते की आता तु खरा उडण्याच्या लायक झालाय।
बालकविता असली तरी या कवितेत केवढा अर्थ समावलाय …

छोड घोंसला बाहर आया,
देखी डाली देखे पात,
और सुनी जो पत्ते हिलमिल,
करते है आपस में बात;

माँ, कया मुझको उडना आया?
“नहि चुरुगन, तू भरमाया”



डाली से डाली पर पहुंचा,
देखी कलिया, देखे फूल,
उपर उठकर फुनगी जानी,
नीचे झुककर जांना मूल;
माँ, कया मुझको उडना आया?
“नहि चुरुगन, तू भरमाया”
कच्चे-पक्के फल पहचाने,
खाये और गिराये काट,
खाने-गाने के सब साथी,
देख रहे है मेरी बाट;
माँ, कया मुझको उडना आया?
“नहि चुरुगन, तू भरमाया”
उस तरु से इस तरु पर आता,
जाता हूं धरती की और,
दाना कोई कही पडा हो,
चुन लाता हूं ठोक-ठठोर;
माँ, कया मुझको उडना आया?
“नहि चुरुगन, तू भरमाया”

मै नीले अज्ञात गगन की,
सुनता हूं अनिवार पुकार,
कोई अंदर से कहता है,
उड जा, उडता जा पऱ मार ;

माँ, कया मुझको उडना आया?
“आज सफल है तेरे डैने
आज सफल है तेरी काया”
डैने = पंख
- हरिवंशराय बच्चन

  मंगळवार, १३ मे, २०१४   0 टिप्पणी(ण्या)


कुछ तो होता है दीवाने मे जुनूँ का भी असर
और कुछ लोग भी दीवाना बना देते हैं
- unknown

'किताबों से कभी गुजरो तो यूँ किर्दार मिलते है
गये वक्तों की ज्योढी में खडे कुछ यार मिलते है!'
- गुलजार

आँखों को वीजा नहीं लगता, सपनों की सरहद होती नहीं
बंद आँखों से रोज मै सरहद पार चला जाता हूँ!..
- गुलजार

वो जिंदगी के कडे कोस! याद आता है
तिरी निगाहे करम का घना साया
- फिराक

वो देवदार की टहनी पे रुक गया सा चाँद
हवा चले तो अभी करवटे बदलने लगे
- विमल कृष्ण अश्क

यू न मुरझा कि मुझे खुद पे भरोसा न रहे
पिछले मौसम मे तिरे साथ खिला हूं मै भी
- मजहर इमाम

ये एक अब्र1 का टुकडा कहा कहा बरसे
तमाम दश्त2 ही प्यासा दिखाई देता है
-शकेब जलाली
1 बादल, मेघ  2 जंगल


कोई तहरीर1 मिटाये तो धुआं उठता है
दिल वो भीगा हुआ कागज है कि जलता ही नही
-मुमताज रशीद
1 लिखावट


मैने इस खौफ से बोये नही ख्वाबों के दरख्त
कौन जंगल मे उगे पेड को पानी देगा
- दाराब बानो वफा

जैसा दर्द हो वैसा मंजर होता है
मौसम तो इंसान के अंदर होता है
- आजीज एजाज

गलियो मे वही लडके हाथो मे वही पत्थर
क्या लोग मोहब्बत को हर दौर मे मारेंगे
- अन्वर नदीम

चिराग बन के जले है तुम्हारी महफिल मे
वो जिनके घर में कभी रौशनी नही होती
- नरेश कुमार शाद

बरसात मे तालाब हो जाते है कमजर्फ1
बाहर कभी आपे से समुंदर नही होता
- ऐजाज रहमानी
1 कमीना


फूल मुरझाते है अल्फाज नही मुरझाते
दूर जाना है बुजूर्गो कि दुआ ले जाओ
- शैदा रुमानी

खुशबू कि तरह जीना भी आसान तो नही
फुलो से कतरा कतरा निचोडा गया हूं मै
- नसीम निकहत


मिट्टी भी उठा लेते है टूटे हुये घर की
गिराते हुए लोगो को उठाने नही आते
- अशोक मिजाज

फूल से आशिकी का हुनर सीख ले
तितलिया खुद रुकेंगी सदाये न दे
- बशीर बद्र


शहर वालो की मुहब्बत का मै कायल हूं मगर
मैने जिस हाथ को चूमा वही खंजर निकला से
- अहमद फराज


बुलंदीयो गिरोगे तो टूट जाओगे
जबाँ से अपनी बडा बोल बोलते क्युं हो
- महबूब राही

जुल्म होता था तो जंजीर हिला देते थे
आज तो होंठ हिलाने से भी डर लगता है
- के. आर. ज्या

दो तुन्द1 हवाओ पर बुनियाद है तूफान की
या तुम न हंसी होते या मै न जवा होता
- आरजू लखनवी
1 तीक्ष्ण, उग्र, उत्कट


घर से मास्जिद है बहुत दूर, चलो यू कर ले
किसी रोते हुए बच्चे को हसाया जाये
- निदा फाजली


सूरज के हमसफर जो बने हो तो सोच लो
इस रास्ते मे प्यास के दरिया भी आयेगा
- कतील शिफाई


रात के सन्नाटे मे हमने कया कया धोके खाये है
अपना ही जब दिल धडका, तो हम समझे वो आये है
- कतील शिफाई