मंगळवार, ३० नोव्हेंबर, २०१०   0 टिप्पणी(ण्या)

गुलजार यांच्या अनेक सुंदर कवितांपैकी ही देखील एक सुंदर कविता
सवांदाचा एव्हडा सुंदर वापर करत मानवी नात्यांवर एवढं सुंदर भाष्य करणारी कविता गुलजरांसारखा एखादा सिद्धहस्तच लिहू जाणे 
नाही का ? 




















मुझको भी तरकीब सिखा यार जुलाहे
अकसर तुझको देखा है कि ताना बुनते
जब कोइ तागा टुट गया या खत्म हुआ
फिर से बांध के
और सिरा कोई जोड़ के उसमे
आगे बुनने लगते हो

तेरे इस ताने में लेकिन
इक भी गांठ गिराह बुन्तर की
देख नहीं सकता कोई
मैनें तो ईक बार बुना था एक ही रिश्ता
लेकिन उसकी सारी गिराहे
साफ नजर आती हैं 


मेरे यार जुलाहे
गुलजार 


जुलाहा=विणकर 

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